Text of PM’s speech during Dussehra Celebrations at DDA Ground, Dwarka in Delhi
Posted On: 08 OCT 2019 9:05PM by PIB Delhi
जय श्रीराम – जय श्रीराम
जय श्रीराम – जय श्रीराम
जय श्रीराम – जय श्रीराम
विशाल संख्या में पधारे हुए संस्कृति प्रेमी- मेरे प्यारे भाइयो और बहनों। आप सबको विजयादशमी के पावन पर्व की अनेक-अनेक शुभकामनाएं।
भारत उत्सवों की भूमि है। शायद ही 365 दिन में कोई एक दिन बचा होगा, हिन्दुस्तान के किसी न किसी कोने में कोई न कोई उत्सव न मनाया जाता हो।
हजारों साल की सांस्कृतिक परम्परा के कारण अनेक वीर पौराणिक गाथाओं से जुड़ा हुआ ये जीवन, इतिहास की धरोहर को मजबूत करने वाली सांस्कृतिक विरासत- इन सबके चलते हमारे देश ने उत्सवों को भी संस्कार का, शिक्षा का और सामूहिक जीवन का एक निरन्तर प्रशिक्षण करने का काम किया है।
उत्सव हमें जोड़ते भी हैं, उत्सव हमें मोड़ते भी हैं। उत्सव हम में उमंग भी भरते हैं, उत्साह भी भरते हैं और नए-नए सपनों को सजने का सामर्थ्य भी देते हैं। हमारी रगों में उत्सव धधकता रहता है, इसलिए भारत के सामाजिक जीवन का प्राण तत्व उत्सव है। और ये उत्सव प्राण तत्व होने के कारण हजारों साल पुरानी इस महान परम्परा को कभी क्लब कल्चर में जाना नहीं पड़ा। उत्सव ही उसके भावों की अभिव्यक्ति का उत्तम माध्यम बनते रहे हैं और यही उत्सवों का सामर्थ्य होता है।
उत्सव के साथ एक प्रतिभा को निखारने का, प्रतिभा को एक सामाजिक गरिमा देने का, प्रतिभा को प्रस्तुत करने का; ये भी हमारे यहां निरन्तर प्रयास चला है। कला हो, वाद्य हो, गान हो, नृत्य हो; हर प्रकार की कला हमारे उत्सवों से अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। और इसी कारण भारत की हजारों साल की सांस्कृतिक विरासत में इस कला साधना के कारण, उत्सवों के माध्यम से कला हमारे जीवन व्यवस्था में होने के कारण भारतीय परम्परा में रोबोट पैदा नहीं होते हैं, जीते-जागते इंसान पैदा होते हैं। इसके भीतर की मानवता, इसके भीतर की करुणा इसके भीतर की संवेदना, इसके भीतर की दया भावना; इसको लगातार ऊर्जा देने का काम उत्सवों के माध्यम से होता है।
और इसलिए अभी-अभी हमने नवरात्रि के नौ दिन, हिन्दुस्तान का कोई कोना ऐसा नहीं होगा जहां पर नवरात्रि का पर्व न मनाया जाता हो। शक्ति साधना का पर्व, शक्ति उपासना का पर्व, शक्ति अराधना का पर्व, और ये शक्ति भीतर की कमियों को कम करने के लिए, भीतर की असमर्थताओं से मुक्ति पाने के लिए, भीतर घर कर गई कुछ हल्की–फुल्की चीजों से मुक्ति पाने के लिए, ये शक्ति की अराधना एक नए स्वरूप में नई शक्ति का संचार भीतर-भीतर करता है।
और जब मां की उपासना करने वाला ये देश, शक्ति साधना करने वाला ये देश, उस धरती पर हर मां-बेटी का सम्मान, हर मां-बेटी का गौरव, हर मां-बेटी की गरिमा, इसका संकल्प भी ये शक्ति साधना के साथ हम लोगों की जिम्मेदारी बनता है; समाज के हर नागरिक की जिम्मेदारी बनता है।
और इसलिए इस बार मैंने मन की बात में कहा था कि हमारे यहां उत्सव युग-काल अनुसार परिवर्तित होते रहे हैं। हम एक ऐसा समाज हैं, जो गर्व के साथ बदलाव को स्वीकार करते हैं। हम चुनौतियों के साथ चुनौती देने वाले भी हैं और आवश्यकता के अनुसार अपने-आपको बदलने वाले भी लोग हैं।
समय रहते परिवर्तन लाना और इसी का कारण है जब कोई कहता है कि- हस्ती मिटती नहीं हमारी, क्यों नहीं मिटती- उसका कारण यही है कि जब हमारे समाज में कोई बुराई आती है तो हमारे समाज के भीतर से ही उन बुराइयों के खिलाफ संघर्ष करने वाले महापुरुष भी पैदा होते हैं। हमारे ही समाज में घर कर गई, समाज में स्वीकार की गई बुराइयों के खिलाफ हमारे ही समाज का व्यक्ति जब लड़ाई लड़ने निकलता है, शुरू में संघर्ष होता है बाद में वही आदरणीय तपस्वी आचार्य, वही अपना युग पुरुष, वही अपना प्रेरणा पुरुष बन जाता है।
और इसलिए हम बदलाव को निरन्तर स्वीकार करने वाले लोग हैं। और जब बदलाव को स्वीकार करने वाले लोग हैं तब, मैंने इस बार मन की बात में कहा था कि दिवाली के पर्व पर हम महालक्ष्मी का पूजन करते हैं। लक्ष्मी का आगमन बड़ी आतुरता से हम करते हैं। हमारे मन में सपना होता है कि आने वाला वर्ष अगली दिवाली, तक ये लक्ष्मी हमारे घर में ही रहे, लक्ष्मी हमारी बढ़ती रहे- ये हमारे मन का भाव रहता है।
मैंने मन की बात में कहा था कि जिस देश में लक्ष्मी की पूजा होती हो, हमारे घर में भी लक्ष्मी होती है, हमारे गांव, हमारे मोहल्ले में भी लक्ष्मी होती है, हमारी बेटियां लक्ष्मी का रूप होती हैं। हम, हमारे गांव में, हमारे मोहल्ले में, हमारे वार्ड में, हमारे शहर में, इस दिवाली पर जिन बेटियों ने अपने जीवन में कुछ हासिल किया है, achieve किया है, जो बेटियां दूसरों को प्रेरणा दे सकती हैं; हमने सामूहिक कार्यक्रम करके उन बेटियों को सम्मानित करना चाहिए, वो ही हमारा लक्ष्मी पूजन होना चाहिए, वो ही हमारे देश की लक्ष्मी होती है। और इसलिए हमारे यहां उत्सवों का भी समयानुकूल बदलाव हमने स्वीकार किया है।
आज विजयादशमी का पावन पर्व है और साथ-साथ आज हमारी वायुसेना का भी जन्मदिन है। हमारे देश की वायुसेना जिस प्रकार से पराक्रम की नई-नई ऊंचाईयां प्राप्त कर रहा है, आज ये अवसर है विजयादशमी का पावन पर्व, और जब भगवान हनुमान को याद करते हैं तब विशेष रूप से आइए हम वायुसेना को भी याद करें। और हमारे वायुसेना के सभी हमारे जांबाज जवानों को भी याद करें और उनके लिए भी शुभकामनाएं हम व्यक्त करें, उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं व्यक्त करें।
आज विजयादशमी का पर्व है, आसुरी शक्ति पर दैवी शक्ति का पर्व है, विजय का पर्व है। लेकिन समय रहते हुए हमने हर पल हमारे भीतर की आसुरी शक्ति को परास्त करना भी उतना ही जरूरी होता है और तभी जा करके हम राम की अनुभूति कर सकते हैं। और इसलिए प्रभु राम की अनुभूति करने के लिए, हमने भी अपने जीवन में विजयश्री पाने के लिए, डगर-डगर पर विजयश्री पाने के संकल्प के साथ हमारी भीतर की ऊर्जा, भीतर की शक्ति को सामर्थ्य देते हुए हमारे भीतर की कमियां, भीतर की weaknesses, भीतर की आसुरी प्रवृत्ति को नष्ट करना ही हमारा सबसे पहला दायित्व बनता है।
आज विजयादशमी के पर्व पर और जब महात्मा गांधी की 150वीं जयंती हम मना रहे हैं, तब सभी देशवासी संकल्प करें-
हम देश की भलाई के लिए एक संकल्प इस वर्ष में पूर्ण करके रहेंगे, जिससे किसी न किसी के द्वारा देश की भलाई का काम हो। अगर मैं पानी बचाता हूं, वो भी एक संकल्प हो सकता है। मैं कभी खाना खाता हूं- जूठा नहीं छोडूंगा, ये भी संकल्प हो सकता है। मैं बिजली बचाऊं- ये भी संकल्प हो सकता है। मैं कभी भी देश की संपत्ति का नुकसान नहीं होने दूंगा- ये भी संकल्प हो सकता है।
हम ऐसा कोई संकल्प और विजयादशमी के पर्व पर संकल्प ले करके, महात्मा गांधी की 150वीं जयंती हो, गुरु नानक देव जी का 550वां प्रकाश पर्व हो, ऐसा पवित्र अवसर, ऐसा संयोग बहुत कम मिलता है। इस संयोग का उपयोग करते हुए, उसी में से प्रेरणा पाते हुए हम भी कोई न कोई संकल्प करें अपने जीवन में, और विजयश्री प्राप्त करके रहेंगे, ये भी हम तय करें।
सामूहिकता की शक्ति कितनी होती है। सामूहिकता की शक्ति- भगवान श्रीकृष्ण को जब याद करें तो एक उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया था लेकिन सभी ग्वालों को उनकी लाठी की सामूहिक ताकत से उसको उठाने में उन्होंने साथ जोड़ा था।
प्रभु रामजी के जीवन में देखें- समंदर पार करना था, पुल बनाना था, ब्रिज बनाना था- सामूहिक शक्ति, वो भी अपने साथी के रूप में जंगलों से जो साथी मिले थे, उनको साथ ले करके सामूहिक शक्ति के माध्यम से प्रभु रामजी ने ब्रिज भी बना दिया और लंका भी पहुंच गए। ये सामर्थ्य सामूहिकता में होता है। ये उत्सव सामूहिकता की शक्ति देते हैं। उस शक्ति के भरोसे हम भी अपने संकल्पों को पार करें।
प्लास्टिक से मुक्ति दिलाने के लिए हम अपने-आपको कोशिश करें। अपने गांव, गली, मोहल्ले को जोड़ें, एक आंदोलन के रूप में चलाएं- no first use plastic. और इसलिए इस प्रकार का विचार ले करके single use plastic के लिए मुक्ति का हमारा अपना संकल्प होना चाहिए।
आज प्रभु रामजी के इस विजयोत्सव के पर्व को हजारों साल से हम विजय पर्व के रूप में मनाते हैं। रामायण का मंचन करके संस्कार सरिता बहाने का प्रयास करते हैं। पीढ़ी-दर-पीढ़ी ये संस्कार संक्रमण चलता रहता है।
आज ये द्वारका रामलीला समिति के द्वारा भी इस मंचन के द्वारा युवा पीढ़ी को, नई पीढ़ी को हमारी सांस्कृति विरासत को परिचित कराने का जो प्रयास हो रहा है, मैं अंत:करण पूर्वक उनको बधाई देता हूं।
आपको भी विजयादशमी की अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं। और मेरे साथ फिर से बोलिए-
जय श्रीराम – जय श्रीराम
जय श्रीराम – जय श्रीराम
जय श्रीराम – जय श्रीराम
बहुत-बहुत धन्यवाद।